आरटीआई अधिनियम 2005 । RTI Act Of 2005

RTI Act Of 2005 । आरटीआई अधिनियम 2005

         

    वेदों के कथन तमसो माँ ज्योतिर्गमय के समान सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 ( RTI Act Of 2005 ) प्रशासनिक गोपनियता के अंधकारमय युग से सूचना और जानकारी के युग में ले जाने वाला कानून है । यह कानून सूचना को सर्वसुलभ बनाकर जनता की प्रशासन में भागीदारी को बढ़ाता है साथ ही  लोकतन्त्र में जनता के विश्वास को बढ़ाकर लोकतन्त्र को अधिक लचीला और मजबूत बनाता है ।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को लोक कल्याणकारी जनकेन्द्रित प्रशासन की एक कुंजी के रूप में देखा जा सकता है, क्यूंकि  सुशासन के बिना विकास की योजनाओं की संख्या भले ही कितनी ही क्यूँ न हो लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं हो सकता। ‘पारदर्शिता’ जो कि सुशासन का महत्वपूर्ण घटक होती है उसके लिए सही जानकारी और सूचना का लोगों को उपलब्ध होना बहुत जरूरी होता है। इस दिशा में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 एक मील का पत्थर कहा जा सकता है

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार united nations declaration for human rights

1948 में संयुक्त राष्ट्र ने यूनिवरसल डेकलेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (Universal declaration of human rights) को अपनाया । यहीं से वैश्विक स्तर पर मानव अधिकारों को एक नयी पहचान मिली। इसके माध्यम से सबको सूचना प्राप्त करने का अधिकार दिया गया ।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 से पूर्व कि स्थिति

  • सरकारी कार्यालय निम्न कानून के अंतर्गत कार्य करते थे –
  • आधिकारिक गोपनियता अधिनियम 1923 ।  Official Secrets Act 1923
  • केन्द्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम । The Central Civil Services(conduct) Rules
  • कार्यालय पद्धती नियम पुस्तिका । The manual of Office Procedure
  • साक्ष्य के संबंध में राजकीय विशेषाधिकार । Governmental privilege in Evidence
  • गोपनीयता की शपथ । The Oath of Secrecy

RTI Act Of 2005

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 । आरटीआई एक्ट कब लागू हुआ

इस कानून को 15 जून 2005 को अधिनियमित किया गया और 12 अक्तूबर 2005 को लागू कर दिया गया ।

सूचना का अधिकार अधिनियम के उद्देश्य

  • प्रशासनिक जवाबदेही बढ़ाना
  • प्रशासन में अधिक पारदर्शिता लाना
  • नागरिकों को सूचना प्राप्ति में सक्षम बनाना
  • लोकतन्त्र में जनता की भागीदारी बढ़ाना
  • भ्रष्टाचार की रोकथाम करना

सूचना का अधिकार अधिनियम RTI Act Of 2005 के मुख्य प्रावधान

  • कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है।
  • सूचना 30 दिनों के अंदर प्रदान की जाएगी किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतन्त्रता के जुड़ी होने पर 48 घंटो के भीतर उपलब्ध कराने का प्रावधान है
  • सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेजों का संरक्षण करते हुए उन्हें कम्प्युटर में सुरकक्षित रखेँगे।
  • प्राप्त सूचना से असंतुष्ट होने पर स्थानीय से राज्य और केन्द्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।
  • शिकायत के निदान हेतु केंद्र स्तर पर केन्द्रीय सूचना आयोग तथा राज्य स्तर पर राज्य सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है
  • इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय तथा संसद और विधानमंडलों के अधिनियमों से गठित निकाय सम्मिलित हैं।
  • राष्ट्रीय संप्रभुता, एकता , अखंडता, सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाऔं के प्रकट करने पर बाध्यता नहीं है ।

सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लोगों को दिये गए अधिकार

  • सरकारी दस्तावेजों के प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करना
  • दस्तावेजों का निरीक्षण
  • उपलब्ध सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना
  • किसी इलेक्ट्रोनिक माध्यम से प्रिंट कॉपी प्राप्त करना

सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत प्रतिबंधित सूचना

  • ऐसी सूचना जिससे भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीतिक वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।
  • ऐसी सूचना जिससे किसी न्यायालय की अवमानना होती हो
  • ऐसी सूचना जिससे किसी के व्यापारिक गोपनीयता और बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का हनन होता हो
  • किसी विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना
  • ऐसी सूचना जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो
  • मंत्रिमंडल के विचार विमर्श के अभिलेख संबंधी दस्तावेज
  • कोई निजी व्यक्तिगत सूचना जिसका लोक कल्याण से संबंध नहीं है ।

सूचना का अधिकार अधिनियम में सूचना प्राप्ति

  • मूलतः सरकारी कार्यालयों द्वारा स्वयं ही महत्वपूर्ण सूचनाओ को प्रकट करना जरूरी है ।
  • सूचना लिखित या एलेक्ट्रानिक माध्यम से हिन्दी अँग्रेजी या राज्य की राजभाषा में मांगी जा सकती है। इसके लिए कानून के अंतर्गत तय शुल्क देय होता है ।
  • सूचना की आवेदन के 30 दिन के भीतर प्रदान की जाती है। सूचना अति आवस्यक अर्थात किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतन्त्रता के जुड़ी होने पर 48 घंटो के भीतर उपलब्ध कराई जा सकती है।
  • वहीं प्रत्येक कार्यालय को एक जन सूचना अधिकारी (पीआईओ) और उससे ऊपर एक प्रथम अपीलीय अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है।
  • इस कानून के अंतर्गत सूचना संबंधी किसी भी शिकायत के निदान हेतु केंद्र स्तर पर केन्द्रीय सूचना आयोग तथा राज्य स्तर पर राज्य सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है ।

सूचना का अधिकार अधिनियम की उपलब्धियां

  • उच्च पदों पर भ्रष्टाचार के बड़े मामले उजागर किए । जैसे – कोयला घोटाला
  • सामान्य सूचनाएँ पहले से कहीं अधिक स्वतः सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हो रही हैं ।
  • ई मेल तथा टोल फ्री नंबर्स के माध्यम से सार्वजनिक कार्यालयी सूचनाएँ उपलब्ध हो रहीं हैं
  • सरकारी कर्मियों के व्यवहार में सकरत्मक परिवर्तन
  • संवेदनशील समूहों के अधिकारों को बढ़ावा मिला
  • महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला

निष्कर्ष

सूचना का अधिकार कानून ने 2G स्पेकट्रूम घोटाला तथा कॉमनवेल्थ घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के बड़े मामलों को उजागर करके अपने महत्व और सार्थक्ता को समय समय पर साबित किया है भले ही यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल न रहा हो इसने बड़े स्तर पर सूचना का प्रसार कर आम जन मानस के हित में उपयोगी कार्य किया है ।

आरटीआई अधिनियम एक लंबे समय के बाद व्यवस्था में हुआ एक ऐसा सुधार है जिसके माध्यम से नौकरशाही अधिक जनोन्मुख हुई। इसने निरंकुशता की ओर बढ़ रही व्यवस्था को यह याद दिलाया कि आम नागरिक के अधिकार किसी उच्च पदाधिकारी की कुर्सी से बड़े होते हैं हमारे संविधान द्वारा नागरिकों को जो अधिकार गारंटी के रूप में दिए गए हैं उनका लाभ उठाने में आरटीआई एक्ट ने नागरिकों को अधिक सक्षम बनाया है ।

नागरिकों को प्रत्येक कदम से पूर्व जानने का हक है, जैसे- वोट देने से पूर्व उनके जनप्रतिनिधियों के बारे में तथा उनके द्वारा पूर्व में किए गए कार्यों की सत्यता की जांच करना ताकि वह आश्वस्त हो सकें है कि व्यवस्था सही और सुचारू रूप से कार्य कर रही है और उसके अधिकार व्यवस्था के अंतर्गत सुरक्षित हैं ।
आरटीआई अधिनियम से नागरिकों में ही नहीं वरन व्यवस्था चलाने वाली नौकरशाही और राजनेताओं में भी अपने कार्य के प्रति सजगता पहले से ज्यादा बड़ी है । सही सूचनाओं के प्रकट होने से जनता की मांग भी बढ़ी है और वास्तव में दोनों पक्षों के मध्य में बेहतर संवाद की स्थिति पैदा हुई है । शासन में विश्वास कम होने से ही वास्तव में अलगाववाद और क्षेत्रवाद जैसी समस्याएं भी खड़ी होती है, पारदर्शिता के बढ़ने से सामान्य जन तक सूचनाओं के प्रति जागरूकता आने से इन समस्याओं में भी कहीं न कहीं कमी आती है ।

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