अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम की कहानी |alluri sitarama raju komaram bheem true story hindi

RRR फिल्म अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम के जीवन चरित्र पर आधारित है । परंतु यह फिल्म वास्तविक चरित्रों को लेकर बनी एक काल्पनिक कथा पर आधारित है, जहां अल्लूरी सीताराम राजू और कोमाराम भीम आपस में एक दूसरे को जानते हैं । परंतु वास्तविक जीवन में इन दोनों क्रांतिकारियों का आपस में इतिहास में संबंध कहीं लिखित नहीं है। (alluri sitarama raju komaram bheem true story hindi)

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इन दोनों महान क्रांतिकारियों का जीवन हमारे लिए एक प्रेरणा का स्रोत है । हर भारतीय और स्वतंत्रता का सम्मान करने वाले व्यक्ति के लिए उनका जीवन अनुकरणीय है । इसीलिए उनके जीवन से सकारात्मक परिणाम प्रेरणा लेने हेतु, आइए जानते हैं इनके स्वतंत्रता संघर्ष को संक्षिप्त में लघु कथा के माध्यम से।

इनके जीवन की इस शार्टस्टोरी को आप अवश्य पढ़ें और दूसरों को भी सुनाएं विशेषकर छोटे बच्चों को, जो रोचक कहानियां सुनना बड़ा पसंद करते हैं । आज आवश्यकता है बच्चों को काल्पनिक कथाओं की बजाय वास्तविक जीवन के चरित्रों की कहानियां सुनाई जाएं ताकि वह अपने इतिहास को भी समझें और जीवन में प्रेरणा भी प्राप्त करें।

अल्लूरी सीताराम राजू का रामपा आंदोलन

1882 में मद्रास में ब्रिटिश राज ने मद्रास फारेस्ट एक्ट को लागू किया । इस एक्ट के तहत आदिवासियों के जंगल में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। मद्रास प्रेसिडेंसी के क्षेत्रों में आदिवासी लोग झूम खेती किया करते थे । अर्थात जंगल को काटकर खेती करना और खेती के पश्चात उस स्थान को छोड़कर नई जगह जंगल काट के खेती करना इस खेती को इस क्षेत्र में पोडु खेती कहा जाता है। अंग्रेजों ने जंगल के वाणिज्य हितों (व्यापार) के प्रयोग के लिए खेती पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे आदिवासियों में व्यापक असंतोष पैदा हो गया, क्योंकि उनका संपूर्ण जीवन जंगल पर ही निर्भर था।

1882 में फॉरेस्ट एक्ट पास होने के 15 वर्ष बाद 1897 में मद्रास प्रेसिडेंसी के मोगल्लू गांव में अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म हुआ था । इनके पिता वेंकटरमन राजू एक फोटोग्राफर थे । सीताराम राजू में बचपन से ही अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की भावना थी । क्योंकि वह बचपन से अंग्रेजों की क्रूरता और शोषण की कहानी सुनते आ रहे थे । माना जाता है की वे हाईस्कूल तक पढ़ने के बाद सन्यासी बन गए थे । 25 वर्ष की आयु होने पर उन्होंने लोगों को साथ लेकर विद्रोह छेड़ दिया, जिसे रामप्पा विद्रोह के नाम से जाना जाता है । वह लड़ने के लिए पुलिस थानों से अंग्रेजों के हथियार लूटते थे ।

उनका लक्ष्य अंग्रेजों को पूर्वी घाट से खदेड़ना था । इस लड़ाई में उन्होंने बहुत बड़े-बड़े पुलिस थानों पर छापे मारे । पुलिस थानों को लूटने के बाद सीताराम राजू एक पत्र छोड़ जाते थे जिनमें लूट के हथियारों की जानकारी होती थी और चेतावनी भी कि वे उन्हें रोक कर दिखाएं । जब भी ब्रिटिश सिपाही उन्हें पकड़ने आते सीताराम राजू और उनके साथी उन्हें मौत के घाट उतार देते थे।

यह लड़ाई करीब 2 साल चलती रही । आखिरकार 7 मई 1924 को चिंतपल्ली के जंगलों में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें घेर लिया । अल्लूरी सीताराम राजू को गिरफ्तार करके एक गांव में लाया गया और लोगों में डर और खौफ पैदा करने के लिए सारे गांव के सामने ने गोली मार दी गई ताकि आगे से कोई अंग्रेजों के विरोध में आवाज़ न उठाए ।

अल्लूरी सीताराम राजू का जीवन भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में एक प्रचलित दीपक के समान है । उन्होंने शोषणकारी और दमनकारी शासकों के विरुद्ध स्वतंत्रता का जो संघर्ष किया वह उनके बाद आने वाले क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत था । आज भी सभी भारतीयों के लिए अल्लूरी सीताराम राजू अदम्य साहस, कठिन संघर्ष, और स्वतंत्रता के लिए अद्भुत प्रेम का प्रतीक है । मातृभूमि के प्रति ऐसा समर्पण सर्वकालिक रूप से अद्वितीय है ।

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कोमाराम भीम

कोमाराम भीम का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को तेलंगाना के शंकल्पी गांव में गोंड जनजाति के परिवार में हुआ था । इस जनजाति की हालत बहुत पिछड़ी थी । कोमाराम भीम भी अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए । उन्होंने बचपन से ही अपने लोगों को पुलिस से लेकर जमीदारों के अत्याचारों का शिकार बनते देखा, जंगल में होने वाली पोंडु खेती उनके द्वारा उगाई जाने वाली फसलों को निजाम के लोग छीन लेते थे । भीम के पिता ने जब इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाई तो उन्हें भी मार दिया गया ।

अक्टूबर 1920 में गांव में असल की कटाई के दौरान निजाम के पटवारी वहां पहुंच गए और लोगों को फसल काटने से रोकने लगे, इसी झगड़े में कोमाराम भीम के हाथों पटवारी की हत्या हो जाती है । कोमाराम को जान बचाने के लिए भागना पड़ा । वह अगले कुछ सालों तक अलग-अलग जगहों में भटकता रहा और फिर कुछ समय बाद वह जोड़ीघाट गांव पहुँचकर आदिवासियों को एकत्र करता है । और वे मिलकर अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठानी शुरू कर देते हैं । उन्होंने निजाम और ब्रिटिश राज के विरुद्ध विद्रोह कर दिया ।

1928 से 1940 तक उनका का विद्रोह चलता रहा । इसमें उन्होंने छापामार युद्ध नीति से निजाम और ब्रिटिश राज के लिए काम करने वाले जमीदारों को एक-एक करके मारना शुरू कर दिया । निजाम को लगा यह विद्रोह और बढ़ सकता है, तो समझौते के लिए ऑफर रखा गया कि सभी किसानों और आदिवासियों को उनकी जमीन का पट्टा वापस कर दिया जाएगा और कोमाराम भीम को खेती के लिए जमीन दी जाएगी। लेकिन भीम ने लड़ाई जारी रखी और समझौते से इनकार कर दिया । यह लड़ाई 12 सालों तक ऐसे ही चलती रही ।

निजाम ने 300 सिपाहियों को जोड़ीघाट भेज कर कोमाराम भीम की गोरिल्ला सेना पर हमला करवा दिया भीम और उनके साथी लड़ते हुए सितंबर 1940 को शहीद हो गए ।

कोमाराम भीम द्वारा 1920 में पटवारी की हत्या से शुरू हुआ उनका संघर्ष अगले 20 सालों तक चला भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में किसी क्रांतिकारी द्वारा अकेले संगठन बनाकर इस तरह किया गया संघर्ष अनूठा और विशेष है। यह कोमाराम भीम की शोषण और अत्याचार के विरुद्ध साहस और शौर्य के साथ लड़ने की गाथा है । हर भारतीय के लिए उनका जीवन अनुकरणीय और प्रेरणादायक है।

1. अल्लुरी सीता राम राजू कहाँ के नेता थे?

तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी, वर्तमान आंध्रा प्रदेश क्षेत्र के

2. अल्लूरी सीताराम राजू को किसने गोली मारी?

अंग्रेजों ने उनको सारे गाव के सामने गोली मारी थी

3. अल्लूरी सीताराम राजू ने अपने प्रतिरोध आंदोलन का नेतृत्व कहां किया था?

तत्कालीन मद्रास प्रेसिडेंसी, वर्तमान आंध्रा प्रदेश क्षेत्र में

4. क्या अल्लूरी सीताराम राजू के पास विशेष शक्तियां थीं?

कुछ विशेष विद्याओं को जानने का वो दावा करते थे ऐसा माना जाता है

5. गुडेम क्या है?

आंध्र प्रदेश में स्थित पहाड़ियाँ

6. सीताराम राजू ने कहाँ तक पढ़ाई की थी?

हाई स्कूल

7. अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म कब हुआ?

1897

8. अल्लूरी सीताराम राजू को फांसी कब दी गाय?

1924

9. कोमाराम भीम को प्यार से क्या कहा जाता था?

वीर योद्धा

10. क्या कोमाराम भीम एक स्वतंत्रता सेनानी है?

कोमाराम भीम जंजातीय नेता और स्वतन्त्रता सेनानी थे

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